Language | Hindi |
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ISBN-10 | 978-9389194784 |
ISBN-13 | 978-9389194784 |
No of pages | 63 |
Book Publisher | Evincepub Publishing |
Published Date | 01 Jan 2021 |
Audio Book Length | 02:30:15 |
राजस्थान के भरतपुर जिले में कारौली गांव के अशिक्षित किसान परिवार में 6 दिसम्बर, 1945 को जन्मे रूपचंद वर्मा ने कच्चे रास्तों में मीलों पैदल चल कर शिक्षा पाई। इनके पिताजी ने सपने में दिखे शिवजी की आज्ञा से 1958 में कारौली छोड़कर भोलापुरा गांव बसाया। गांव बसाते समय शिवजी और हनुमानजी की प्राचीन मूर्तियां मिली जिन्हें मंदिर बनवा कर स्थापित किया। यहां विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। चमत्कारी भोलेनाथ से मन बांछित फल पाकर अनेकों श्रद्धालु खुशहाल हुए हैं। अब यह एक प्रसिद्ध भोलाजी धाम बन गया है।
बचपन दर्दनाक किसान शोषण और ब्राह्मण-बनिया गुलामगिरी से घिरा रहा। शोषण के चलते, सौ बीघा जमीन से परिवार का गुजारा भी मुश्किल से हो पाता था। दमतोड किसानी पैदावार को बनिया फर्जीवाड़ा करके ले जाता था और मालामाल रहता था। इसके अलावा, पोंगा पंडित कर्मकांडी मकड़जाल में फंसा कर ठगता रहता था। छात्रकाल में परिवार को पंडित-बनिया जाल से मुक्त किया तो खुशहाली आई।
आग्रह करने पर वर्माजी ने बताया, “बचपन की तीन घटनाओं ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। पहली घटना में, गांव के चमार ने जब अपनी लडकी को दबंग की बेगार करने नहीं भेजा तो उसने चमार की बुरी तरह पिटाई की। दूसरी घटना में, भरतपुर जिला हायर सेकेंडरी स्कूल टूर्नामेंट इंगलिश डिबेट में प्रथम आने पर, कोटा डिविजन में डिबेट के लिए यूनीफोर्म सिलाने 200 रुपये उघार लेने भोले पिताजी को शातिर बनिया के चक्कर लगाने पडे। कोटा डिविजन में भी प्रथम स्थान मिला। तीसरी घटना में, जब मैं बिमार हो गया तो देवी प्रसादजी गर्ग, हैड मास्टर, गवर्नमेंट हायर सेकेन्डरी स्कूल, कुम्हेर दो अध्यापकों सहित साइकिल से मुझे देखने गांव आये तो मेरा जिंदगी में संघर्ष का हौंसला बढ़ा। उच्च अधिकारी बन कर समाज सेवा और ग्रामीण विकास का मन में संकल्प लिया।"
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