माता-पिता से सोते समय कहानियाँ अक्सर में सुनता था, कल्पनाओं के सहारे किसी ओर दुनिया में चला जाता था, पता ही न चला मुझे कि, कब में खुद ही लिखने लग गया, देखते ही देखते कहानियों को लिखने का उत्साह बढ़ता गया, कलम तो थी बचपन से प्यारी, करली उसने कागज़ से यारी, कल्पनाओं के रथ पर करके सवारी, लिखना रखा मैंने जारी, ‘कहानी रे कहानी, नैतीकता है सीखानी’ के रूप में उसे पाया, सार्थक हो जाए मेरी कलम, अगर आपका प्यार मैंने पाया।
माता-पिता से सोते समय कहानियाँ अक्सर में सुनता था, कल्पनाओं के सहारे किसी ओर दुनिया में चला जाता था, पता ही न चला मुझे कि, कब में खुद ही लिखने लग गया, देखते ही देखते कहानियों को लिखने का उत्साह बढ़ता गया, कलम तो थी बचपन से प्यारी, करली उसने कागज़ से यारी, कल्पनाओं के रथ पर करके सवारी, लिखना रखा मैंने जारी, ‘कहानी रे कहानी, नैतीकता है सीखानी’ के रूप में उसे पाया, सार्थक हो जाए मेरी कलम, अगर आपका प्यार मैंने पाया।