छोटी अवस्था से श्री श्री रविशंकरजी के भावी जीवन की प्रत्यक्ष थी। तीन वर्ष की आयु से ही उनको गीता के श्लोक कंटस्थ थे। घण्टों ध्यान में बैठना और पूजा करना उनके बचपन के प्रिय खेल थे। सत्तरह वर्ष की आयु में उन्होंने विज्ञान और वेदों का अध्ययन समाप्त करके एकान्त साधना और संत-संगति में कुछ वर्ष बिताए।
सन् 1982 से श्री श्री की देश-विदेश में यात्राएँ आरम्भ हुईं। गुरुदेव द्वारा निर्धारित शिक्षा-क्रम से लाखों लोगों को चिन्ता व तनाव से मुक्ति का मार्गदर्शन मिला है। आज विश्व-भर में उनकी सुदर्शन क्रिया ‘‘आर्ट ऑफ लिविंग’’ के शिविरों में हर वर्ग, राष्ट्र और धर्म के लोगों को सिखायी जाती है।
छोटी अवस्था से श्री श्री रविशंकरजी के भावी जीवन की प्रत्यक्ष थी। तीन वर्ष की आयु से ही उनको गीता के श्लोक कंटस्थ थे। घण्टों ध्यान में बैठना और पूजा करना उनके बचपन के प्रिय खेल थे। सत्तरह वर्ष की आयु में उन्होंने विज्ञान और वेदों का अध्ययन समाप्त करके एकान्त साधना और संत-संगति में कुछ वर्ष बिताए।
सन् 1982 से श्री श्री की देश-विदेश में यात्राएँ आरम्भ हुईं। गुरुदेव द्वारा निर्धारित शिक्षा-क्रम से लाखों लोगों को चिन्ता व तनाव से मुक्ति का मार्गदर्शन मिला है। आज विश्व-भर में उनकी सुदर्शन क्रिया ‘‘आर्ट ऑफ लिविंग’’ के शिविरों में हर वर्ग, राष्ट्र और धर्म के लोगों को सिखायी जाती है।