Language | Hindi |
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No of pages | 75 |
Font Size | Medium |
Book Publisher | Red-Ink Publishers |
गगन दीप चौहान, श्री शमशेर सिंह और श्रीमति ओमवती चौहान की तीन संतानों में सबसे छोटे, पेशे से पत्रकार हैं। 13 साल से ज़्यादा वक्त से मीडिया प्रोफेशनल के रूप में विभिन्न टीवी चैनल और शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत रहे हैं। संप्रति चंडीगढ़ में टीवी पत्रकार के रूप में कार्यरत। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से एम.ए.
(जनसंचार एवं पत्रकारिता) करने से पहले आर.के.एस.डी. कॉलेज कैथल से ग्रेजुएशन। पढने-लिखने, कविताई करने और थियेटर के साथ पढ़ने का शौक।
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अंदर के पन्नों से...
ये गधे की कहानी है और सृष्टि में गधा अमर प्राणी है। जब तक शाँत है तब तक सही है और जैसे बोला तो पता लग जाता है कि निरा गधा ही है। गधे की इस जीवन गाथा को कोई अंत नहीं दिया गया। क्योंकि ऐसा करना बहुत सारे गधों के साथ अन्याय हो जाता।
जी हाँ, ज़िंदगी में कितने ही गधों से पाला पड़ा और कितनों के बारे में सुनकर, पढकर या उनके क्रिया-कलाप देखकर पता लगा कि आदमजात को गधा बताने वाले क्यों ऐसा कहते हैं। फिर ये महसूस हुआ कि ऐसे गधों को ये बताना कितना ज़रूरी है कि आप गधे हैं। तो बताने के तरीके ढूंढते-ढूंढते निकल आया थोड़ा सा हास्य, थोड़ा सा व्यंग्य और एक छोटी सी कहानी, जिसके पात्र कहीं भी हो सकते हैं। ज़रा पढिए और अपने आस-पास ढूंढिए।